Saturday 31 May 2014

उसने सारे संसारको अन्धा कर दिया है

यदि अपने चाहनेवालो को इश्वर भी चाहता है तब तो वह इच्छाशून्य नहीं है 

बहुत सुंदर तर्क है ! क्या इश्वर इच्छा का दास है ..? भक्त जबतक इच्छाशून्य न हो जाय तबतक भाग्यहीन है ! इश्वर नित्य नवीन,  पवित्र एवं चैतन्य है ! और चैतन्य में इच्छा..? थोडा सा अटपटा सा लगता है !  इच्छा का स्थान मैं कहा बताऊ..?क्योकि वह तो हर एक मनुष्य में और हर एक स्थान में घुसी हुई है ! प्रतेक दिशामें वह रहती है ! जब तक मनुष्य सो न जाए तब तक वह इच्छा जमीन से असमानकी सैर कर आती है ! जैसा मैं कहता हूँ,वह अत्यंत लघु है परन्तु उसमे अन्धकार इतना है कि उसने सारे संसारको अन्धा कर दिया है ! जहा वह गयी,उसका नाश हो गया ! जिसमे वह बेठ गयी वह नष्ट हो गया ! जब तक मनुष्य सब स्वार्थो का त्याग नहीं करता,तब तक वह उसे नहीं छोडती ! सबमे उसका अस्तित्व ऐसा है जैसा कि सोने,चांदी और ताम्बे में पानी का ! इनमे चाहे जितना खोजो परन्तु पानी का पता नहीं चलेगा ! मगर ज्यो ही आग पे रखो, पिघल कर सब पानी हो जाता है ! इसी तरह जीवजगत अपने अज्ञानसे आश्चर्यमें पड़ा हुआ है ! जब गुरु के उपदेशसे प्रत्क्ष्य हो जाता है तब इश्वर में मिल जाता है !.

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