Wednesday 28 May 2014

तो कौन हमारे विरुद्ध खड़ा रह सकता है

जब इस सँसार में आते हैं, तब हमें, हमारे स्थाई घर, स्थाई सम्बन्धी और यात्री स्वरुप का का, ज्ञान होता है, अतः हम सँसार रुपी पुल पर, निरासक्त और निरभिमानता से जीवन-यापन करते हैं !! और सभी को, सामान रूप से, हमारी आनन्दायी मुस्कराहट बांटते रहते हैं !!
वृद्ध हो जाने पर प्रायः हमें,
हमारे स्थाई निवास, स्थाई सम्बन्धी और यात्री स्वरुप की, पुनः स्मृति होने लगती है, और हम पुनः, निरासक्ति और निरभिमानता के भाव से, जीवन-यापन करने लगते है !! और सभी को सामान रूप से, कल्याण-कारी भावना का, आशीर्वाद बांटते रहते हैं !!
बस सावधानी कि जरूरत हमें होती है ---मध्य-काल (जवानी) के जीवन में !! जब हम अपने स्थाई निवास, स्थाई सम्बन्धी, और यात्री स्वरुप की स्मृति, भुला बैठते हैं !!
और इस बिस्मृति से, 
संसार में उपस्थित अन्य यात्रियों/निवास/वस्तुओं से हमें, इतनी आसक्ति हो जाती है कि, हम उन्हें सह-यात्री/ट्रैन कि बर्थ/यात्रा के सामान की तरह ना समझ, सगे स्थाई-संबंधी, स्थाई-निवास और ईस्वर कि सुरक्षा शक्ति से भी अधिक, महत्त्व देने लगते हैं ..!! फिर तो ट्रैन में ही, बर्थ पर, इतना सामान इकट्ठा कर लेते हैं कि, बर्थ पर आराम करने के लिए, जगह ही नहीं बचती !!
अर्थात यह हम यह भूल जाते हैं कि, 
यदि ईस्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध खड़ा रह सकता है ? क्योंकि वही एकमात्र, सबको स्वांश देने वाला है ( When God is with us, who can be against us, because, He 
परन्तु सबसे मजे दार बात इस आलेख की यह है कि --- 
इन उपरोक्त परेशानियों से बचने का भी उपाय है, और वह भी इस कलिकाल में सबसे सरलतम - "प्रवसि नगर कीजै सब काजा, ह्रदय राखि कौंसलपुर राजा" ..!! अर्थात, भगवान् के नाम का स्मरण करते हुए, महावीर हनुमानजी कि तरह, कार्य करते रहें !!
फिर तो अपने स्थाई सम्बन्धी की निरंतर (स्वांश-प्रस्वांश में) स्मृति से, (राम नाम के प्रभाव से), सभी जगह, अर्थात मन के अंदर विचारों में, और बाहर संसार में, निर्मलता/सहजता/निर्भयता, अपने आप आती जायेगी !!
राम नाम मणि-दीप धर, जीह देहरी द्वार, 
तुलसी भीतर बाहिरो, जो चाहसि उजियार !!

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