Friday 30 May 2014

तुम्हारे शरीर को एक पल भी अपने साथ नहीं रखना चाहते

मैं ब्रह्म हूँ अर्थात सारा जगत, जिसमें रहने व बसने वाले सभी जीव - जन्तु - पशु - पंछी - वृक्ष आदि सभी ब्रह्म हैं अर्थात ब्रह्ममय हैं।

फिर जाति - धर्म - मजहब के नाम पर तुम सब आपस में क्यों बटे हुए हों। तुम सब मेरा ही अंश हो। ब्रह्म की कोई जाती नहीं होती है, वह तो स्वयं में परमात्मा स्वरुप होता हैं। अर्थात मेरा ही स्वरूप हैं।

मैं अपनी दो महाशक्तिओं (ॐ एवं ह्रीं) द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना करता हूँ। मैं ही देह रूप और प्राण रूप में जगत में व्याप्त हूँ। अज्ञानता वश जीव एक दूसरे के प्रति भेद भाव तथा घृणा का भाव रखता है और स्वयं को परमश्रेष्ठ समझता हैं।

शरीर से प्राण निकल जाने के बाद घृणा और अहंकार का अंत हो जाता हैं। जो लोग तुमसे प्रेम करते हैं, वही लोग देह से प्राण निकल जाने के बाद तुम्हारे शरीर को एक पल भी अपने साथ नहीं रखना चाहते, वल्कि उसका त्याग के देते हैं।

मैं ओंकार रूप में देह और ह्रींकार रूप में प्राण हूँ। यह दोनों महाशक्तियाँ मेरी ही है और मैं ही ब्रह्म हूँ, इसमें बिलकुल संदेह न करें।

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