Sunday 25 May 2014

आपकी पत्नी बुरे से बुरे वक़्त में भी आपके साथ रहेगी

हर सुबह की तरह आज भी अलार्म बजने से पहले मेरी नींद खुल गई। क्योंकि मेरे लिए अलार्म का काम वो औरतें कर देती हैं जो खिड़की से सटे आम के पेड़ से गिरे हुए सूखे पत्ते बिछने आती हैं। उनके झाड़ू की लगातार खड़-खड़ मुझे बिस्तर छोड़ने को मजबूर कर देती है। उनके लिए खाना पकाने का यही एक साधन है। बरसात और जाड़े में उनके झाड़ू का काम खत्म हो जाता है। पर वो आती जरुर हैं। चाहे दो-चार ही लकड़ियां क्यों न मिले पर इस बगीचे से कुछ न कुछ ले कर ही जाती है। 11 बजते-बजते सभी औरतें अपने-अपने घर को चली जाती हैं। पर इतने समय तक वो सायद ही कुछ खाती होंगी। क्योंकि जब तक वो बगीचे में दिखायी देती हैं उनके मुँह में एक दातुन लटक रहा होता है। 
मैंने आँखे खोली और भगवान को धन्यवाद दिया फिर एक नयी सुबह दिखाने के लिए। खिड़की के बाहर देखा तो एक बुढ़िया पते बिटोर रही थी। और वो गाय अभी तक आयी नहीं थी जो रोज इस वक़्त आ जाया करती थी अपनी हक़ की वो रोटी लेने जो रात को खाना खाने से पहले मैं खिड़की पर रख देता था। सोचा कभी आएगी तो खा लेगी मैंने रोटी खिड़की से निचे गिरा दी। पर लगता है आज उस रोटी की ज्यादा जरुरत उस बुढ़िया को थी जो पत्ते बिटोरत-बिटोरते खिड़की के करीब आयी और वो रोटी उठा कर अपनी साड़ी के एक कोने में बांध ली।
कहते हैं इंसान की जरुरत ही उसके हैसियत के पन्ने खोल देती है। आज एक रोटी ने पल भर में उस बुढ़िया का पूरा वर्तमान दिखा दिया। मैंने डब्बे से कुछ बिस्कुट निकाले और उसे देते हुए कहा .... "वो रोटी गाय के लिए छोड़ दीजिये।"
मुझे लगा उसे कुछ लज्जा होगी की मैंने उसकी चोरी पकड़ ली, पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उसके चेहरे पर इस बात की कोई मलाल न था। उसने मेरे हाथों से बिस्कुट लिए और मैथिलि में ही कुछ ऐसा कह गई जिसकी मैंने कभी कल्पना भी न किया था.... "उ सब पत्तो खा लेई छै बउआ, बुढ़वा अखन तक किछ नै खैल हेतै।" (गाय तो पत्ते भी खा लेंगी, लेकिन बूढ़ा (उसका पति ) अभी तक कुछ नहीं खाया होगा )।

""दोस्तों सुख में या दुःख में अगर कोई जिंदगी भर आपका साथ देगी तो है आपकी पत्नी। इसलिए जो स्थान आपकी पत्नी की है वो कभी किसी को ना दें। आपके बच्चे एक दिन आपसे घृणित हो सकते हैं पर यकीन मानिये आपकी पत्नी बुरे से बुरे वक़्त में भी आपके साथ रहेगी।""

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