Tuesday 23 September 2014

मनोवैज्ञानिकों की खोज बड़ी हैरान करने वाली है

आत्मा की अमरता, आत्मा का शेष रहना शरीरे के पार, आत्मा का अतिक्रमण करना शरीर को; दीया मिट जाए लेकिन ज्योति बचती है; यह सवाल नचिकेता उठाता है। नचिकेता कहता है, बड़ा संशय है। कोई कहता है कि आत्मा बचती है और कोई कहता है कि आत्मा नहीं बचती। मृत्यु के बाद क्या होता है? यही मेरा तीसरा वर है, यही मैं जान लेना चाहता हूं।

यही प्रत्येक जान लेना चाहता है। अगर मृत्यु के बाद कुछ बचता है, तो अभी भी आपके भीतर कुछ है। और अगर मृत्यु के बाद कुछ भी नहीं बचता, तो अभी ची आपके भीतर कुछ भी नहीं है। अभी भी आप खाली, कोरे, एक यंत्रवत। एक यंत्र से ज्यादा नहीं हैं। आप अभी भी नहीं हैं—अगर मृत्यु के बाद आप नहीं बचेंगे। तो धोखा है, आपको सिर्फ खयाल है कि आप हैं—अगर आप पदार्थ का एक जोड़ हैं, और एक रासायनिक व्यवस्था हैं, और एक यंत्र की भाति चल रहे हैं।

एक कार चल रही है, एक घड़ी चल रही है, एक मशीन चल रही है, लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि मशीन है। मशीन सिर्फ एक जोड़ है। कल—पुर्जे अलग कर लेंगे, कुछ भी पीछे बचेगा नहीं।

आदमी भी क्या एक जोड़ है, कि सारे कल—पुर्जे अलग कर लें तो भीतर कुछ भी न बचे? क्योंकि मृत्यु कल—पुर्जे अलग करेगी। और अगर भीतर कुछ भी नहीं बचता, आप सिर्फ एक जोड़ है—तो आप थे ही नहीं। आपका होना ही नहीं है। आप सिर्फ खयाल में हैं। एक वहम है होने का।

न तो आपकी बुद्धि से पता चलता है कि आपके भीतर आत्मा है। क्योंकि आप जितनी बुद्धिमानी का काम करते हैं, उससे ज्यादा बुद्धिमानी का काम करने वाले यंत्र, कंप्यूटर खोज लिए गए हैं। आप जितनी कुशलता से काम करते हैं, उससे कुछ आत्मा का पता नहीं चलता, क्योंकि यंत्र की कुशलता आप नहीं पा सकते। यंत्र ज्यादा कुशल है। और इसलिए जहा भी ज्यादा कुशलता की जरूरत होती है, वहां आदमी का भरोसा नहीं किया जा सकता। वहा यंत्र का भरोसा करना होता है।

आपकी खूबी क्या है? कि आप गणित कर लेते हैं? कि आप भाषा बोल लेते हैं? ये सब काम यंत्र कर सकते हैं। उन्होंने करीब—करीब करना शुरू कर दिया है। आदमी की विशिष्टता, यंत्रों से, इसमें नहीं है कि वह बुद्धिमान है ‘ आइंस्टीन भी जो काम कर रहा है, वह काम भी उससे ज्यादा कुशलता से एक कंप्यूटर कर सकता है। तो फिर आपका मस्तिष्क एक यंत्र, कंप्यूटर से ज्यादा नहीं है। आप भी एक यंत्र हैं।

आदमी बच्चे पैदा करता है। लेकिन अभी वैज्ञानिकों ने ऐसे यंत्र विकसित किए हैं, जो अपने बच्चे पैदा कर सकते हैं। यंत्र खुद ही अपने जैसा यंत्र अपने भीतर से पैदा कर सकता है, निर्मित कर सकता है। तब फिर वह भी कोई बड़ी बात नहीं रह गई। यंत्र अपने जैसा यंत्र स्वयं ही निर्मित कर सकता है, आटोमैटिक। और ऐसी भी व्यवस्था की गई है कि वह आने वाले यंत्र में, जो उससे पैदा होगा, अपने से श्रेष्ठता लाए। और इस तरह हर यंत्र जो उससे पैदा होगा, और आगे पैदा होगा, वह पिछले से श्रेष्ठ होता चला जाएगा। आपका बेटा जरूरी नहीं है कि आपसे श्रेष्ठ हो। अक्सर तो ऐसा नहीं होता। अच्छे बाप अक्सर बुरे बेटों को जन्म देते हैं। यंत्र में ऐसी आंतरिक व्यवस्था की जा सकी है कि वह जो यंत्र पैदा करे, उससे श्रेष्ठ हो। जो —जो उसमें भूल—चूक थीं, वह उसमें न हों। फिर उसके बाद वह जो यंत्र पैदा करेगा, वह और भी श्रेष्ठ होगा। और एक ऐसी जगह आ सकती है कि यंत्र पैदा करते—करते श्रेष्ठतम यंत्र को पैदा कर दे, जो कि आदमी अभी तक सफल नहीं हुआ है।

और आप जिनको सुख—दुख कहते हैं, वे भी सारी यांत्रिक घटनाएं हैं।

स्किनर एक बहुत बड़ा मनसविद है। स्किनर ने बहुत से प्रयोग किए हैं जिनमें आपके सुख—दुख यांत्रिक हैं, इसकी खोज की है। मनुष्य जिस सुख को गहरा से गहरा जानता है, वह संभोग का सुख है। लेकिन स्किनर, देलगादो और दूसरे मनोवैज्ञानिकों की खोज बड़ी हैरान करने वाली है।

चूहों पर स्किनर और उसके मित्र काम कर रहे थे। उन्होंने मस्तिष्क में वे बिंदु खोज लिए हैं जहां सुख का अनुभव होता है—प्लेजर प्याइंट्स, और वे भी बिंदु खोज लिए हैं जहां दुख का अनुभव होता है। तो बिजली का तार जोड़ देते हैं जहां सुख का अनुभव होता है। और उस बिंदु को अगर बिजली से छेड़ा जाए, तो बड़ा सुख मालूम होता है। दुख का बिंदु जोड़ दिया जाए इलेक्ट्रोड से, तो बड़ा दुख मालूम होता है। एक चूहे पर स्किनर प्रयोग कर रहा था। और संभोग के क्षण में चूहे को जो रस और आनंद मालूम होता है, वह मस्तिष्क के किस हिस्से में मालूम होता है उस हिस्से का उसने अध्ययन किया, और उस हिस्से में उसने बिजली से तार जोड़ दिया। और चूहे को बटन बता दी, बटन दबाकर। और जैसे ही बटन दबाई, चूहा बड़ा आनंदित हुआ। फिर तो चूहे ने खुद बटन दबाना सीख लिया। आप चकित होंगे कि एक घंटे में चूहे ने पांच हजार बार बटन दबाई। पांच हजार! रुका ही नहीं, जब तक कि बेहोश होकर नहीं गिर पड़ा। स्किनर का कहना है कि आने वाली सदी में हम हर आदमी के खीसे में रखने वाला छोटा यंत्र दे देंगे। पुरुष को स्त्री की जरूरत नहीं है, स्त्री को पुरुष की जरूरत नहीं है। जब भी वह कामसुख पाना चाहे, जरा—सा बटन को दबाए उसके मस्तिष्क का सुख—केंद्र संचालित हो जाएगा। रास्ते पर चलते हुए आप संभोग करते चले जाएंगे। किसी को पता भी नहीं चलेगा। और संभोग के लिए जो उपद्रव झेलने पड़ते हैं—घर—गृहस्थी बसाओ; एक स्त्री की परेशानी भोगो; एक पति का उपद्रव झेलो—वह कुछ भी नहीं। आप पूरी तरह मालिक हो जाते हैं।

ठीक ऐसे ही दुख के केंद्र भी मस्तिष्क में हैं। स्किनर कहता है कि वे काटकर अलग किए जा सकते हैं। कोई दुख अनुभव ही नहीं होगा। आप सोचते हैं कि दुख इसलिए अनुभव होता है कि दुख है, तो आप गलती में हैं। सिर्फ आपके पास दुख का केंद्र है, वह अलग कर दिया जाए, आपको दुख अनुभव नहीं होता। जब आपको मारफिया दिया जाता है, या क्लोरोफार्म दिया जाता है, तो दुख का केंद्र आच्छादित हो जाता है। इसीलिए फिर आपका हाथ—पैर भी काटा जाए तो आपको पता नहीं चलता। आपको कोई मार भी डाले तो पता नहीं चलता।

ये सारे केंद्र यांत्रिक हैं। और आप जानकर हैरान होंगे कि ये नई खोजें आदमी को बड़ी खतरनाक स्थिति में ले जाएंगी।

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