Thursday 4 September 2014

ज श् न -ए- इश्क मनाना है,
उसे रूह में सजाना है,
वो ज़िस्म नहीं कोई,
दुनिया को बताना है,
कुछ अलग ये "पूजा" है,
यही जादू जगाना है!

जमाले-जूनून है ये,
ज़ाहिल है जो ना जाने,
ये जात ज़मीर ज़बर,
जिससे ये ज़माना है,
कुछ अलग ये "पूजा" है,
यही जादू जगाना है!

ये सबकी ज़रुरत है,
ये सबका फ़साना है,
अलफ़ाज़ कोई भी हो,
बस रूह को जगाना है,
कुछ अलग ये "पूजा" है,
यही जादू जगाना है!

ज़ाहिर होता है जब,
रूह रोशन होती है,
जुगनू तारों को अब,
रूह में में चमकाना है,
कुछ अलग ये "पूजा" है,
यही जादू जगाना है!

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