Thursday 11 September 2014

तुम तो केवल प्रतीक्षा करो

कोई चिंतन नहीं, समाधान की खोज नहीं; केवल समर्पण ! एक ही संकल्प ! तुमसे मिलना है ! इससे कम कुछ नहीं; इससे अधिक कुछ नहीं ! और अब सारी व्यवस्थायें उनकी ओर से होंगी, तुम तो केवल प्रतीक्षा करो, लगन में कमी न आने पावे वरन उत्तरोत्तर बढ़ती ही जावे। वह जब चाहेंगे तब गुरु भी मिलेंगे और उनकी कृपा से तुम पहिचान भी लोगे। अपने किसी मित्र या प्रियजन की देखा-देखी किसी को भी गुरु बनाकर अपने जीवन की इस सबसे महत्वपूर्ण घटना का महत्व कम न करें वरन श्रीहरि की कृपा से इस घटना के घटित होने की प्रतीक्षा करें और प्रतीक्षा अवधि में स्वयं को पात्र बनाने के लिये श्रीनाम-जप और सदाचरण का अवलंबन लेना चाहिये। जब किसी को देखकर तुम्हारे मन में श्रीहरि से मिलन की व्याकुलता और बढ़ जाये, जिसका सानिध्य तुम्हें एक अनिवर्चनीय रस से भर दे, दिव्य-प्रेम और श्रद्धा मन में हिलोरें लेने लगें, आत्मा भी प्रसन्न होकर नृत्य करने लगे, तन-मन-प्राण से मधुर झंकार होने लगे, मिलने के उपरान्त जिससे दूर होना तुम्हें रीता कर दे और जिसे लाख न चाहने के बाद भी "गुरु" बनाये बिना तुम रह न पाओ; समझ लेना कि "उनको" "उन्होंने" ही भेजा है, तुम्हारे लिये ! केवल तुम्हारे लिये !
जय जय श्री राधे !

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