Tuesday 23 September 2014

मस्तिष्क सब कुछ अनुभव करता है


देलगादो ने रेडियो के द्वारा दूर से लोगों के मन को संचालित करने के प्रयोग किए हैं। तो उसने एक सांड को, उसके मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड डाल दिए… और आप जानकर चकित होंगे कि आपके मस्तिष्क के भीतर अगर कोई चीज डाल दी जाए तो आपको पता नहीं चलेगा। वहां कोई संवेदना नहीं है। अगर आपके ब्रेन की सर्जरी की जाए और वहा कोई चीज छोड़ दी जाए—लोहे का एक टुकड़ा—तो आपको कभी पता नहीं चलेगा कि वहा लोहे का टुकड़ा पड़ा है। क्योंकि आपके मस्तिष्क में संवेदन अनुभव करने वाले कोई स्नायु नहीं हैं।

यह बड़ी हैरानी की बात है कि मस्तिष्क सब कुछ अनुभव करता है, लेकिन भीतर उसके पास कोई स्नायु नहीं हैं। इसलिए तो आपको मस्तिष्क के भीतर क्या चल रहा है, उसका पता नहीं चलता। बहुत बड़ा

काम चल रहा है। बड़ी फैक्ट्री है। कोई सात करोड़ स्नायु हैं। चौबीस घंटे वहां विद्युत की तरह भाग—दौड़ चल रही है। आपको पता नहीं चलता है।

एक सांड के मस्तिष्क में देलगादो ने एक इलेक्ट्रोड रख दिया और उस इलेक्ट्रोड का संबंध उसके रेडियो से है। और वह उस रेडियो के द्वारा उस सांड को संचालित करने लगा। जब वह रेडियो में उस बटन को दबाएगा जिससे सांड को क्रोध आना चाहिए, तो सांड एकदम फुफकार मारकर क्रोध से भर जाएगा। बीच में तार भी नहीं जुड़ा है, वायरलेस से संबंधित है। हजारों मील दूर भी बैठा हो देलगादो तो वहां से वह सांड कों—सांड माउंट आबू में हो और देलगादो अमरीका में—तो वहां से वह उसको क्रोधित कर सकता है। सिर्फ बटन दबाने की बात है कि वह क्रोध में आ जाएगा; फुफकार मारेगा और जो भी आसपास होगा, हमला कर देगा।

उसने जब अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया यूरोप में—स्पेन में—तो लोग चकित हो गए। लाखों लोग देखने इकट्ठे हुए थे। सांड फुफकार मारकर भागा, क्योंकि देलगादो भी था वहां मैदान में। वह हाथ में अपना रेडियो लिए खड़ा हुआ है। वह ठीक उसके पास आ गया, एकदम घबड़ाहट का क्षण था, कि वह अपने सींग घुसेड़ देगा उसके पेट में, तभी उसने बटन दबाई। साड वहीं शांत हो गया, एक फीट दूरी पर। खड़ा हो गया, जैसे एकदम ध्यान में चला गया!

यह इतनी खतरनाक स्थिति है कि इसका आज नहीं कल राजनीतिज्ञ उपयोग करेंगे। बच्चों को अस्पताल में पैदा होने के साथ ही इलेक्ट्रोड डाले जा सकते हैं, जिनका उनको कभी पता नहीं चलेगा। सिर्फ दिल्ली से बटन दबाने की जरूरत है कि सब लोग कहेंगे—झंडा ऊंचा रहे हमारा!

जरूर तानाशाही हुकूमतें इसका उपयोग करेंगी। कि मुल्क भूखा मर रहा हो तो भी कोई फिक्र नहीं। लेकिन मुल्क के अगर सुख के संवेदन को संचालित किया जा सके, तो भूखे लोग भी आनंद से भर जाएंगे। कितने ही आप सुखी हों, अगर आपके दुख के केंद्र को संचालित किया जा सके, आप तज्‍क्षण दुखी हो जाएंगे। तो सुख—दुख भी आपकी आत्मा की खबर नहीं देते। सिर्फ आपके यांत्रिक मस्तिष्क की खबर देते हैं। सिर्फ एक ही संभावना है जिससे आदमी यंत्रवत नहीं है, और सभी स्थितियों में हम यंत्रवत हैं। शरीर है भी यंत्र, लेकिन उसके भीतर जो छिपा है, वह यंत्र नहीं है। शरीर है भी एक बहुत काप्लिकेटेड, बहुत सूक्ष्म नाजुक यंत्र। मालिक भीतर छिपा है।

नचिकेता पूछता है कि यह मेरा तीसरा वरदान है कि मैं जानना चाहता हूं कि जब यह सारा यंत्र—शरीर गिर जाएगा, तब भी मैं बचता हूं या नहीं? संशय है बहुत, क्योंकि कुछ कहते हैं कि कोई बचता है पीछे; और कुछ कहते हैं, कोई भी नहीं बचता।

यमराज को विचार हुआ कि अनधिकारी के प्रति आत्मतत्व का उपदेश करना हानिकर होता है

यह थोड़ा समझ लेने जैसा है। अनधिकारी के प्रति, अपात्र के प्रति आत्मतत्व का उपदेश हानिकर होता है। असल में जो अनधिकारी है, वह सत्य का उपयोग भी हानि के लिए ही करेगा। जो अधिकारी है वह असत्य का उपयोग भी कल्याण के लिए करेगा।

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