Saturday 27 September 2014

माया का गुणगान कितनी देर करतें है

जहां जहां मन अटकाया है वहाँ तृप्ति नहीं मिलती है गुरु के पास आकर मन को शान्ति मिलती है 
- संसार में बार बार दुःख पाते है फिर भी उसे नहीं छोड़ते है 
- गुरु हमारे सुख सामने रखता है फिर भी उसको अपना नहीं बनाते वहीँ सिज सिज कर खत्म हो जाते है 
- हम माया में जम्प नहीं लगाएंगे तो वहीं दुखी हो हो कर हम खतम हो जाएंगे ये आसक्ति बहुत कस्ट देती है मन को आलंबन देने की आदत है तो भगवान का आलंबन दो 
- गुरु के गुणों का बखान नहीं कर सकते गुरु के इतने गुण है अगर हम गुरु का गुणगान करेंगे तो प्रेम बढ़ता ही जायगा फिर गुरु से प्रेम बढ़ते बढ़ते माया छुटटी जाएगी 
स्तुति में ही स्थिति है 
आप देखिये आप गुरु की भगवन की बात कितनी देर करते हैं.. और माया का गुणगान कितनी देर करतें है 
- गुरु के गुण बाहरी नहीं - बल्कि उसका ज्ञान ही उसके गुण है आप ज्ञान का चिन्तन क्यों नहीं करते माया की बातों में मन लगाते हो हमेशा 
- जिनका मन शरीर में आसक्त होता है उसे उन शरीरो के बिछरने का भी गम होगा जब जीते जी अपने को ही शरीर से अलग कर दिया तो फिर और किस से जुड़न होगी
शरीर से अपना पार्टीशन करो...
- मन जहाँ जुड़ने लगे संसार से उसे हटाइये - ये अभ्यास निरन्तर करना पड़ता है माया में बहाव को रोकना है 
** एक नाली मे काई रोज़ साफ करी जाती थी रोज जमती थी एक एक्सपर्ट ने बताया नाली का पानी रोक दीजिये फिर सूरज की किरणों से जड़ सूखेगी तो फिर काई नहीं जमेगी ऐसा ही किया फिर काई नहीं ज़मी 
हम अपने मन को माया के बहाव से रोकें फिर गुरु के ज्ञान की रौशनी में रक्खें तो फिर काई नहीं जमेगी विकारों की 
हम जिस डाल पर बैठें है उसी को काटते है 
- भजन था मन को मारे मारे 
गीता भगवान ने कहा - मन को मोड़े मोड़े यानि माया से हटाकर मन को मोड़कर भगवान में लगादो ये मरेगा नहीं इसकी दिशा बदल दो 
- जैसे खा खा कर ऊब जाते हो पहिन पहिन कर ऊब जाते हो ऎसे ही संसार में मै मेरे से ऊब होने लगे पर मन ऊबता नहीं है संसार को ही पकड़कर बैठें है..तभी दुखों का अन्त नही होता")

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