Sunday 7 September 2014

परमात्मा को " अभी " न मानना बड़ी भरी भूल होगी ,
" अपना " न मानना उससे बड़ी भूल होगी ,
और " अपनेमें " न मानना सबसे बड़ी भूल होगी ।
प्रभु अपने में हैं , अभी हैं और अपने हैं -
इससे पमात्मा मिल जायेगा ।
याद रहे ,
और कुछ भी अपना है , और परमात्मा भी अपना है -
ये दोनों बातें एक साथ नहीं होतीं ।
जबतक हम और कुछ भी अपना मानते हैं ,
तबतक तो मुख से कहते हुए भी -
हमने सच्चे ह्रदय से भगवान् को नहीं माना ।
यही इसकी पहचान है ।
सर्वसमर्थ साधक का भूतकाल नहीं देखते ।
उसकी वर्तमान वेदना से ही करुणित हो अपना लेते हैं ।
भगवान् का कोई ठिकाना नहीं है ।
ऐसा नहीं कि संसार अलग हो ,
भक्ति अलग हो , तत्त्वज्ञान अलग हो , और भगवान् अलग हो ।
सब मिलकर जो चीज है , उसीका नाम भगवान् है ।

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