Friday 5 September 2014

परमेश्वर ने सभी को सामान अधिकार दिए है

ये विषय सदा से लोगो के मध्य गंभीर रहा है,या यु कहु की बस व्यर्थ में गंभीर बनाकर रखा हुआ है की,स्त्रियों को हनुमानजी की पूजा नहीं करना चाहिए या उन्हें स्पर्श नहीं करना चाहिए,या उनकी साधना नहीं करना चाहिए।

आखिर ऐसा क्या दोष है स्त्री में की समाज के कुछ ज्ञानीजन उन्हें हनुमान पूजा का अधिकारी नहीं मानते है ?

क्या उनका दोष केवल इतना ही है की हनुमानजी ब्रह्मचारी है,और स्त्रियों के स्पर्श से उनका ब्रह्मचर्य खंडित हो जायेगा ?

अगर मात्र स्पर्श करने से ब्रह्मचर्य खंडित होता है तो,फिर सभी गुरुपद पर आसीन गुरुओं का भी ब्रह्मचर्य हर क्षण खंडित हो रहा है.क्युकी उनकी तो ना जाने कितनी ही स्त्री शिष्य है जो उनके चरण छूती 

ब्रह्मचर्य तो तब खंडित होगा न जब हम किसी स्त्री के स्पर्श करने पर अपने मन में काम भाव लाएंगे। और ज्ञानिसमाज क्या हनुमानजी को इतना निर्बल मानते है,की एक साधारण स्त्री के स्पर्श से उनके भीतर काम भाव जाग जायेगा और उनके ब्रह्मचर्य खंडित हो जायेगा।

अरे जिन्हे स्वर्ग की अप्सराये,यक्षिणियां आदि अपनी और आकर्षित नहीं कर पायी तो उन्हें सांसारिक स्त्री कैसे आकर्षित कर पायेगी।जब भी श्री प्रभु के समक्ष कोई स्त्री जाती थी.तो वे उन्हें माता कहकर सम्बोधित कर देते थे.या बहिन कहकर सम्बोषित कर देते थे.जिनका जन्म एक स्त्री के गर्भ से हुआ हो,उनका स्त्री से कैसा बैर.हनुमानजी कामासक्त नहीं है.परन्तु ब्रह्मचर्य क्या है वे ये भली भाती जानते है.

अगर स्त्रियों का स्पर्श वर्जित है,तो क्यों हनुमान माता अंजना के चरण स्पर्श करते है.अब ये न कहना की वो तो उनकी माँ थी,ये बहुत पुराने बहाने हो चुके है.अगर वो उनकी माँ थी तो जो राक्षसी होती थी वो तो उनकी माँ नहीं होती थी न फिर क्यों प्रभु उनसे युद्ध करते थे और एक मुष्टि प्रहार से उनका वध कर दिया करते थे.क्यों प्रभु ने स्पर्श किया एक राक्षसी का ?

ऐसे कई प्रश्न है जिनका उत्तर हमारे ज्ञानी समाज के पास नहीं है.हर स्त्री हनुमानजी की पूजा कर सकती है,साधना कर सकती है,उनकी परिक्रमा कर सकती है.आपके स्पर्श से उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है.हा आपका मन दूषित हो तो बात अलग है.अन्यथा किसी स्त्री का इतना सामर्थ्य नहीं है की स्पर्श मात्र से प्रभु के मन को विचलित कर दे.अगर आप ऐसा सोचते है तो आप अपने हनुमान को बहुत काम आक रहे है.और अपने भगवान के सामर्थ्य पर शंका करने से अच्छा है की हम भक्ति करना ही छोड़ दे.

हर स्त्री प्रभु की भक्ति तथा साधना कर सकती है.हनुमानजी को गुरु के रूप में पूजे बड़े भाई के रूप पूजे और फिर देखे की उनकी कृपा आप पर बरसती है की नहीं। जो लोग तंत्र मार्ग में है वे प्रत्यंगिरा को तो जानते ही होंगे,माँ का ही उग्र स्वरुप है प्रत्यंगिरे। माँ पूर्ण दिगंबर अवस्था में दिगंबर शिव की गोद में हिमालय के उच्च शिखर पर बैठी है.किसी बात को लेकर माँ क्रोधित हो जाती है,और पुनः शांत होने पर शिव से कहती है,की है शम्भू मेरे उस उग्र स्वरुप के बारे में आप कुछ कहे जो कुछ क्षण पहले मैंने धारण किया था.शिव ने कहा की आज से तुम प्रत्यंगिरा कहलाओगी तंत्र में तुम्हारा विशेष स्थान होगा। शिव के दिगंबर देह से दिगंबर अवस्था में प्रकट होती है प्रत्यंगिरा,अंग पर एक धागा भी नहीं है.इसी लिए प्रत्यंगिरा है.कृत्या तक को भस्म कर देने वाली,एक हुंकार मात्र से ब्रह्माण्ड को फोड़ देने वाली ये प्रत्यंगिरा।और हर देवता के अंग में विराजती है प्रत्यंगिरा।जब क्रोध में आ जाती है तो अच्छे अच्छो को नग्न करके रख देती है प्रत्यंगिरा।इसी प्रत्यंगिरा का प्राकट्य हुए श्री हनुमानजी की देह से भी.

जब हनुमानजी की तपती देह से मकरध्वज ने जन्म लिया, तो श्री प्रभु इस बात को स्वीकार नहीं कर पाये। क्रोध में भर गए,और उनके इसी क्रोध में तपते देह से उत्पन्न हुई हनुमत प्रत्यंगिरा। प्रत्यंगिरा नग्न है अतः वो लोगो के विचारो में दौड़ती है मनुष्य स्वयं के सामने ही नग्न हो जाता है,ऐसे उसकी सत्यता को खोलकर रख देती है प्रत्यंगिरा। इसी देवी ने हनुमानजी के मन को शांत किया।और उसी दिन से प्रत्यंगिरा का एक नाम और हुआ हनुमत प्रत्यंगिरा। जो हनुमत प्रत्यंगिरा को पूज लेता है उसके शत्रु काल के मुख में समां जाते है,पूर्ण उग्र और तंत्र की मुख्य देवियों में से है हनुमत प्रत्यंगिरा। हनुमान के तप करने पर उनके ही अंग से प्रकट होती है यह देवी। भविष्य में इस विषय पर भी चर्चा अवश्य होगी।आज ये बताने कका केवल इतना ही उद्देश्य था की प्रभु के श्री अंग में एक स्त्री विराजती है जिसे तंत्र ने हनुमत प्रत्यंगिरा कहा है.तो आप उन्हें स्त्री तत्त्व से दूर कैसे करेंगे ?

परमेश्वर ने सभी को सामान अधिकार दिए है अतः कोई भेद ना करे.अपने दर्शनशास्त्र के आधार पर सत्यता को हम नकार नहीं सकते है.अतः स्त्रियों को भी समान अधिकार प्रदान करे.ये स्त्री समाज की शक्ति है.इनमे बड़ा धैर्य है! प्रभु आपके लिंग को नहीं आपकी भावनाओं को देखते है.पुरुष के भटकने के अवसर अधिक होते है परन्तु स्त्री मन से दृढ़ होती है अपने संकल्प के प्रति इस कारण वो भटकती नहीं है.और प्रभु की कृपा की पात्र बनती है.अधिक लिखने से कोई लाभ नहीं है .जिन्हे समझना है वे इतने में ही समझ जायेंगे।और जो समझना नहीं चाहता है,उसके लिए तो एक ग्रन्थ भी छोटा पड़ जायेगा।

मेरा उद्देश्य किसी के ह्रदय को कष्ट पहुचना नहीं है अपितु सत्य को सामने रखना है.अतः पुनः वही बात कहूँगा की अति ज्ञानी, लम्पट और हर बात में निंदा खोजने वाले लोग पोस्ट से दूर रहे ये पोस्ट केवल उनके लिए है,जिनका विश्वास है की में उनका अनुचित मार्गदर्शन नहीं करूँगा।

No comments:

Post a Comment