Friday 19 September 2014

जिससे उनका प्रभाव कम होने लगता है।

-आकाश नाम का व्यापक तत्त्व आकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश तीन रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। चिदाकाश जो ज्ञान का आश्रय है सबसे सूक्ष्म है। एक विषय से दूसरे विषय की प्राप्ति के मध्य में क्षण भर का जो अवकाश अनुभव में आता है वह चिदाकाश ही है। केवल वही संकल्प रहित है उसमें स्थिर हो जाने से आत्मा परम तत्त्व या परमपद की प्राप्ति होती है। यह तीनों आकाश एक ही तत्त्व के त्रिगुणात्मक रूप हैं।
आकाशतत्त्व के उपरोक्त विश्लेषण से यह पता चलता है कि ईश्वरीय सत्ता के सबसे समीप तत्त्व आकाश ही है उसमें विराट् जगत् की सर्व व्यापकता समाहित है। अयन मण्डल की खोजों के परिणाम स्वरूप जो निष्कर्ष सामने आये हैं उनमें से भी ऐसे ही अनेक रहस्यों का उद्घाटन होता चला आ रहा है। अयन मण्डल बृहस्पति पर वलय की भाँति पृथ्वी को सभी ओर से घेरे हुये हैं या यों कहें हम हमारी पृथ्वी आकाश में स्थिति है। इस आयन मण्डल (आयनोस्फियर) में विद्युत कणों की अनेक नियमित-अनियमित परतें हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार भी उनमें से तीन प्रमुख हैं। इन परतों को एयल्टन ने “ई”, “एफ” और “डी” परतों का नाम दिया। धरती की ऊँचाई पर जहाँ वायुमण्डल का दबाव कम है वहाँ विचरण करने वाले अणु और परमाणु अपने अणु (इलेक्ट्रान) खो देते हैं। इलेक्ट्रानों के तोड़ने की यह क्रिया सूर्य सम्पन्न करता है-यह क्रियाशीलता जिस सीमा तक तीव्र होती है, अयन मण्डल उतनी ही तीव्रता से पृथ्वी में जलवायु आदि का नियन्त्रण करता है। यही नहीं वह लोगों के मन, हृदय और गुणों को भी प्रभावित करता है। यह कार्य वह केन्द्रक शक्ति करती है जो इलेक्ट्रान के खो जाने के पश्चात् शेष रहती है। इसी से पता चलता है कि केन्द्रक- कोई मनोमय शक्ति है।
एक निश्चित सीमा के बाद इन कणों की तीव्रता घटने लगती है। वायु-मण्डल का जितना दबाव बढ़ता जाता है अयन मण्डल का सूक्ष्म प्रभाव घटता जाता है और पृथ्वी पर पहुँचते-पहुँचते उनकी सक्रियता में पृथ्वी के धूल और गैसें आदि के कण भी मिल जाते हैं जिससे उनका प्रभाव कम होने लगता है। अधिक ऊँचाई पर अधिक स्वच्छ वायु से स्वास्थ्य पर जो प्रभाव पड़ता है उससे भी अधिक महत्व इन सूक्ष्म कणों द्वारा चित्त को प्रसन्नता देने का है। हम जितना ऊपर उठते हैं उतना ही हमारी प्रसन्नता और अन्य गुण विकसित होते हैं। यह आकाश तत्त्व की ही सूक्ष्म सक्रियता है।

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