Saturday 6 September 2014

रोते क्यों हो

चैतन्य महाप्रभु के पास एक सेठ ने जाकर पूछाः
"आप कहते हैं कि 'हरि-हरि बोल' कह कर हाथ ऊँचे करो। भगवान का कीर्तन करो। तो ऐसा करने से क्या लाभ होता है ?"
सुनकर गौरांग रोने लगे।
"महाराज ! रोते क्यों हो ?"
तब गौरांग बोलेः "आज तक मैंने तुम्हारे जैसा स्वार्थी नहीं देखा कि जो भजन करने भी लाभ ही ढूँढता हो। आज मैंने कौन-सा पाप किया कि मुझे तुम्हारी मुलाकात हुई ? क्या नश्वर लाभ के लिए ही तेरा जन्म हुआ है ? हरि का भजन करना यह तेरा कर्त्तव्य नहीं है ? तेरा स्वभाव नहीं है ? सुखी और आनंदित रहना यह तेरा स्वभाव नहीं है ? अमर होना यह तेरा स्वभाव नहीं है ? बाकी के लाभ तो सब मरने वाले लाभ हैं। भजन करोगे तो तुम तुम्हारे स्वभाव में जग जाओगे और स्वभाव में जग जाने जैसा लाभ दुनिया में दूसरा कोई हो नहीं सकता। 'माला करने से कौन-सा लाभ होता है ? नौकरी मिलेगी ? यह होगा ? वह होगा ? ना.... ना..... ये सब लाभ नहीं हैं। ये सब तो बँधन की रस्सियाँ हैं, फाँसियाँ हैं। जिन्हें तुम आज तक लाभ मान बैठे हो वे लाभ नहीं, फाँसे हैं।"

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