Monday 22 September 2014

बच्चे के साथ भी अत्यंत सम्मानपूर्वक व्यवहार चाहिए।


नचिकेता तीसरा वर मांगते हुए कहता है : मरे हुए मनुष्य के विषय में यह संशय है— कोई तो यों कहते हैं कि मरने के बाद आत्मा रहता है और कोई ऐसा कहते हैं कि नहीं रहता। आपके द्वारा उपदेश पाया हुआ मैं इसका निर्णय भलीभांति समझ लूं यही तीनों वरों में से तीसरा वर है।। 20।।

यमराज ने सोचा कि अनधिकारी के प्रति आत्मतत्व का उपदेश करना हानिकर होता है अतएव पहले पात्र— परीक्षा की आवश्यकता है ऐसा विचारकर यमराज ने इस तत्व की कठिनता का वर्णन करके नचिकेता को टालना चाहा और कहा— हे नचिकेता। इस विषय में पहले देवताओं ने भी संदेह किया था परंतु उनकी भी समझ में नहीं आया। क्योंकि यह विषय बड़ा सूक्ष्म है सहज ही समझ में आने वाला नहीं है। इसलिए तुम दूसरा वर मांग लो, मुझ पर दबाव मत डालो इस आत्मज्ञान संबंधी वर को मुझे लौटा दो।। 21।।

नचिकेता आत्मतत्व की कठिनता की बात सुनकर घबराया नहीं न उसका उत्साह मंद हुआ वरन् उसने और भी दृढ़ता के साथ कहा हे यमराज। आपने कहा कि इस विषय पर देवताओं ने भी विचार किया था परंतु वे निर्णय नहीं कर पाए और यह सरलता से जानने योग्य भी नहीं है; इतना ही नहीं इस विषय का कहने वाला भी आपके जैसा दूसरा नहीं मिल सकता। इसलिए मेरी समझ में इसके समान दूसरा कोई वर नहीं है।। 22।।

विषय की कठिनता से नचिकेता नहीं घबड़ाया वह अपने निश्चय पर ज्यों का त्यों दृढ़ रहा। इस एक परीक्षा में वह उत्तीर्ण हो गया। अब यमराज दूसरी परीक्षा के रूप में उसके सामने विभिन्न प्रकार के प्रलोभन रखने की बात सोचकर उससे कहने लगे— सैकड़ों वर्षों की आयु वाले बेटे और पोतो को तथा बहुत से गौ आदि पशुओं को एवं हाथी स्वर्ण और घोड़ों को मांग लो भूमि के बड़े विस्तार वाले साम्राज्य को मांग लो। तुम स्वयं भी जितने वर्षों तक चाहो जीते रहो।। 23।।

हे नचिकेता। धन, संपत्ति और अनंतकाल तक जीने के साधनों को यदि तुम इस आत्मज्ञानविषयक वरदान के समान वर मानते हो तो मांग लो और तुम इस पृथ्वीलोक में बड़े भारी सम्राट बन जाओ। मैं तुम्हें संपूर्ण भोगों में से अति उत्तम भोगों को भोगने वाला बना देता हूं।।24।।

इतने पर भी नचिकेता अपने निश्चय पर अटल रहा तब स्वर्ग के दैवी भोगों का प्रलोभन देते हुए यमराज ने कहा—जो—जो भोग मनुष्यलोक में दुर्लभ हैं उन संपूर्ण भोगों को इच्छानुसार मांग लो। रथ और नाना प्रकार के वाद्यों के सहित इन स्वर्ग की अप्सराओं को अपने साथ ले जाओ। मनुष्यों को ऐसी स्त्रियां निःसंदेह अलभ्य हैं। मेरे द्वारा दी हुई इन स्त्रियों से तुम अपनी सेवा कराओ। पर हे नचिकेता। मरने के बाद आत्मा का क्या होता है इस बात को मत पूछो।।25।।

परंतु? नचिकेता तो दृढ़निश्चयी और सच्चा अधिकारी था। वह जानता था कि इस लोक और परलोक के बड़े से बड़े भोग— सुख की आत्मज्ञान के सुख के किसी क्षुद्रतम अंश के साथ भी तुलना नहीं की जा सकती। अतएव उसने अपने निश्चय का युक्तिपूर्वक समर्थन करते हुए पूर्ण वैराग्ययुक्त वचनों में यमराज से कहा— हे यमराज! जिनका आपने वर्णन किया, वे क्षणभंगुर भोग (और उनसे प्राप्त होने वाले सुख) मनुष्य के अंतःकरण सहित संपूर्ण इंद्रियों का जो तेज है उसको क्षीण कर डालते हैं। इसके सिवा समस्त आयु चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो अल्प ही है। इसलिए ये आपके रथ आदि वाहन और ये अप्सराओं के नाच— गान आपके ही पास रहे (मुझे नहीं चाहिए)।। 26।।

मनुष्य धन से कभी भी तृप्त नहीं किया जा सकता है। जबकि हमने आपके दर्शन पा लिए हैं तब धन को तो हम पा ही लेने और आप जब तक शासन करते रहेंगे तब तक तो हम जीते भी रहेंगे। इन सबको भी क्या मांगना है। अत: मेरे मांगने लायक वर तो वह आत्मज्ञान ही है।। 27।।

इस प्रकार भोगों की क्षणभंगुरता का वर्णन करके अब नचिकेता अपने वर का महत्व बतलाता हुआ उसी को प्रदान करने के लिए दृढ़तापूर्वक निवेदन करता है—यह मनुष्य जीर्ण होने वाला और मरणधर्मा है इस तत्व को भलीभांति समझने वाला मनुष्यलोक का निवासी कौन ऐसा मनुष्य है जो कि बुढ़ापे से रहित न मरने वाले आप सदृश महात्माओं का संग पाकर भी स्त्रियों के सौदर्य—क्रीड़ा और आमोद—प्रमोद का बार—बार चिंतन करता हुआ बहुत काल तक जीवित रहने में उत्सुकता रखेगा?।। 28।।

हे यमराज! जिस महान आश्चर्यमय परलोक संबंधी आत्मज्ञान के विषय में लोग यह शंका करते हैं कि यह आत्मा मरने के बाद रहता है या नहीं उसमें जो निर्णय है वह आप मुझे बतलाए। जो यह अत्यंत गूढ़ता को प्राप्त हुआ वर है इससे दूसरा वर नचिकेता नहीं मांगता।। 29।।

छोटे से नचिकेता के संबंध में एक बात ध्यान मेले लेनी चाहिए,तो ही मृत्यु के साथ उसका यह अन्वेषण हमारी समझ आ सकता है। नचिकेता कितना ही छोटा हो, कितना ही उसकी शरीर की उम्र कम हो, उसकी आत्‍मा की उम्र अनंत है। कोई भी बच्‍चा-बच्‍चा नहीं है। और कोई भी बच्‍चा सिर्फ कोरी स्‍लेट की भांति नहीं है। इसलिए बच्चे के साथ भी अत्यंत सम्मानपूर्वक व्यवहार चाहिए।

यह शरीर नया हो, लेकिन इसके भीतर छिपी चेतना नई नहीं है। जितनी इस संसार की उम्र है, उतनी ही उम्र इस चेतना की भी है। यह चेतना हजारों बार शरीरों में जन्मी है और विदा हुई है। सुख और दुख, जीवन की उलझनें और सुविधाएं, जीवन के रहस्य और रस, जीवन के भ्रम और सत्य, सब इस चेतना ने भी अनुभव किए हैं।

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